एहे…पणघट को रै स्याम बड़ो ही रसियो रै पणघट को [टेर]
एहे…गाछां की ओट छिप्यो रै मनमोहन
गोपिया नै रोज दिखावै तसियो रै पणघट को [1] टेर
एहे…सबर सखिया तो जळ भरण रै आई रे
मनमोहन म बांको मन बसियो रै पणघट को [2] टेर
एहे…हंस-हंस मीठी रै मीठी रै बात बणावै रै
मटकी तो फोड़कै रै स्याम हंसियो रै पणघट को [3] टेर
एहे…चंद सखी सरणागत आई रै
चरण कमल म म्हारो चित बसियो रै पणघट को [4] टेर।