बिघ्‍न हरण मंगल करण ओर होत बुधी परकास।
लेत नांव गणेस को तो हरे करोड़ अपराद॥
बरमा बिसणु लक्समी तो महेस गुणो की खान।
सुरसवत मया मनाय कै मै करू हरि गुणगान॥
बिन्या गुरु बिन्या ना कोई संगी…अंतै समय कै मांई रै मन मेरा सतगुरु कर मेरा भाई [टेर]

जद घणो कस्ट पड़ैगो तेरै रै निरगुण आडो आई
मात-पिता सुत तिरिया रै बान्धू मुंडो रै लेसी छिपाई [1] टेर

धन ओर दोलत महल-माळिया रै सबी धर्या रह ज्याई
जमका दूत पकड़ ले ज्यासी रै जूता खातो जाई [2] टेर

राज तेज की चलै नाही मायती देवांगी चलै बठे नाही
दूर खड़्या गुरुदेव देखिया भाग गया जमराई [3] टेर

गुरु मिलै तो बन्दन छुड़ा दे निरभय कर दे सोई
अचल राम तज सकल आसरो गुरु सरण सुख होई [4] टेर।