तपस्या बरस हजार की ओर सतसंग की पल एक।
तो बी बराबर ना तुलै कवि सुखदेव किया विवेक॥
नीन्द निसाणी मोत की ओर उठ कबीरा जाग।
ओर रसायन‌ छोड़ कै तो एक राम रसायन ध्यान॥

निन्दरा बेचद्‍यूं कोई ले तो निन्दरा बेचद्‍यूं कोई ले तो
रामोराम रटै तो तेरो माया जाळ कटैलो [टेर]

अब भाव राख सतसंग म बेठो चित म राखो चेतो
हात जोड़ चरणा म लिपटो जे कोई संत मिलै तो [1] टेर

पाई की मण पांच बेचद्‍यूं जे कोई गराहक हो तो
अरै पांच्या म सूं च्यार छोड़ द्‍यूं रै दाम रोकड़ा दे तो [2] टेर

कै तो जावो राज दूवारै कै रसिया रस भोगी
म्हारो तो लारो छोड़ बावळी म्हे हां रमता जोगी [3] टेर

कहवै भरतरी सुण ए निन्दरा अठे ना तेरा बासा
म्हे तो रे म्हारै गुरु चरणा म राम मिलण की आसा [4] टेर।