मन लोभी मन लालची तो मन चंचल मन चोर।
मन कै मतै मत चालिये पलक-पलक म ओर।
मन जाणै मै मेल चढूं मोति पेरू कान।
सांई कै हात कतरनी बो राखै है उरमान॥

मदवा घूमत जूं हाथी अमर पटो मेरै सतगुरु लिख दिया जागी री साची
घूमत हो मतवाला मन तू घूमत जूं हाथी [टेर]

गुरु गमयांचल की मेरै तन म जगै बिरै बाती
सुरत कलाळी प्याला फेरै पीयो सेण साथी [1] टेर

पीवत प्याला जेज नाही उतरै भवत ताल जागी
सोंगै ताल लग्यो घट भीतर सूरत मतमाती [2] टेर

नसा किया जद बकण लाग्या अणबे की बाती
करमत वाल पड़्यो धरणी पै नाही छोड़्या बाकी [3] टेर

उल्टी राह बहे जन सूरा चढ्‍या बंक घाटी
निस दिन गोळा लगै नांव का काळ फोज नाटी [4] टेर

तनसुखराम मिल्या गुरु पूरा मदवाला का भागी
इसरराम नसा नाही उतरै दिवस ओर राती [5] टेर।