गणपति गोरी पुतर को तो पेल्या लिज्यो नांव।
कस्ट निवारण देव है तो बिपदा को के काम॥
जय सारदा मां जय सरस्वति ओर हंस वाहिनि माय।
सतसंग म मै गाय रह्या तो दिज्ये पार लगाय॥
गुरु बिन्या घोर अंधेरा रै साधो भाई गुरु बिन्या घोर अंधेरा रै
जसै मन्दिर है दीपक बिन सुना ना बसतु का बेरा रै [टेर]
पथर कै माही अग्नि रै जापै ना पथरी नै बेरा रै
चकमक चोट लगै गुरु गम की आगै फिरै चोफेरा रै [1] टेर
जब तक कन्या रहवै कुंवारी ना बिरतन का बेरा रै
आठ पहर आळस म खोवै खेल रै खेल घनेरा रै [2] टेर
मिरग की नाभ म बसै किसतुरी ना मिरग नै बेरा रै
ब्याकुल होय बन-बन म भटकै सुंघै घास घनेरा रै [3] टेर
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा ग्यान दिया बहू फेरा रै
भानीनाथ सरण सतगुरु की जाग्या भाग भलेरा रै [4] टेर