एक घड़ी आदी घड़ी तो आदी म पुनयाद।
तुलसी संगत संत की तो कटै करोड़ अपराद॥
कहे मछन्दर नाथ कर सतसंग आत्म बल राखो।
आयो मोको हात सै गयो तो फेर पछताव स्यो॥
चालो सखी ए सतसंगत करिये बिरथा ए जनम गंवावत है री [टेर]
बालपण हंस खेल गमायो
जोबन का अंग सतावत है री चालो सखी ए सतसंगत करिये [1] टेर
बुढापा म सब रोग सतावै
तरसणा की रोध बढ ज्यावत है री चालो सखी ए सतसंगत करिये [2] टेर
पल-पल छिन-छिन उमर घटै है
गयेड़ा बखत नाही आवत है री चालो सखी ए सतसंगत करिये [3] टेर
एसो जनम तो होय मेरी सजनी
फिर ए पिछै पछतावत है री चालो सखी ए सतसंगत करिये [4] टेर