एक कागलो अर कास्तगार घणा जोरका भायला हा। कास्तगार रोजिना पेली कागला नै खाणो खुवातो पा खुद खातो। बठे सूं जाणै कै पाछै कागलो उड’र बरमाजी कै दरबार मांय पूंच ज्यातो अर दरबार कै बारै लागेड़ा बोजा पै बेठ’र बांकी सारी बात सुणतो। आथणकै बाई बात कागलो कास्तगार नै खैतो। एक दिन कागलो कास्तगार सूं खैयो, ‘आज बरमाजी खैर्या हा कै ई साल धरती पै मे कोन्या होवैगो, पण डूंगरा पै भोत मे होवैगो। क्यूं नै ई बर थ्हे डूंगरा पै खेती करो?’ कास्तगार डूंगरा पै खेती चालू करदी। आस-पड़ोस का मिनख बी कास्तगार को मजाक उडाबा लाग्या। बी साल भोत ठाडो काळ पड़्यो। कास्तगार एकलो अंय्या को मिनख हो, जखा कै भोत नाज होयो। देखता ई देखता कई साल बीतग्या। एक दिन कागलो कास्तगार नै खैयो, ‘बरमाजी खैर्या कै ई बर भोत मे होवैगो। नाज बी भोत होसी, पण सारै नाज नै कीड़ा-मकोड़ा खा ज्यासी। थ्हे पैली सूं ई भोत सारी चीड़ी लियावो, जिसूं बै कीड़ा-मकोड़ा नै खा ज्याय।’ कास्तगार बंय्या ई कर्यो जंय्या कागलो बानै बतायो। गेलकी बर कै तजुरबा नै देख’र मिनखा नै संका होयी। बै बिनै गोर सूं देखबा लाग्या, पण माणस ई बर कास्तगार पै हांस्या कोन्या। ई बर बी कास्तगार कै घरां भोत नाज होयो। ओ साल बी बीतग्यो। अबकी बर कागलो कास्तगार नै खैयो, ‘बरमाजी खैर्या कै नाज नै चूसा खा ज्यासी। ईक्ले थ्हे भोत सारी बिलाई लियावो जिसूं बै चूसा नै खा ज्यासी।’ कास्तगार नै बिलायां ल्याता देख सगळा मिनख बिकै सागै हो लिया। ई बर बै कास्तगार की बात मान ली अर ई साल गांमगै मिनखा कै बी भोत नाज होयो।
सीख:- कदे-कदे दूसरा नै करता देख बिकी जंय्या करणो बी नफा म रहवै।