बीड़ म रहबाळै कागलै कै कोई दुख कोनी हो। एक कागलो सुख चेन सूं जिर्‌यो हो। फेर एक दिन बो हंस नै देख्‍यो। धोळा हंस नै देख’र बो सोच्यो, ‘ओ हंस कत्तो धोळो है अर मै कंय्या को काळो हूं। ओ हंस जरूर ई जुग को सऊं खुस जिनावर है।’ कागलो आ बात हंस नै खैई जणा हंस बोल्यो, ‘ना बीरा अंय्या कोन्या है। भोत बखत ताणी मन बी लागो हो कि मै जुग को ससूं सरूप अर सुखी जिनावर हूं, पण एक दिन मै सुवा नै देख्यो, बिकै देई म दो भांत का रंग अनोखा हा, पण मेरकन तो खाली एक ई रंग है। अब मन लागै है कि सुवो ई जुग को ससूं सरूप अर सुखी जिनावर है।’ कागलो सुवा कन गयो अर सुवा सूं बोल्यो, ‘जद ताणी मै मोर कोनी देख्यो हो बठे ताणी मन मेरै सरूप होणै को गुमान हो।’ सुवो बोल्यो, ‘मोर जत्तो सरूप तो कोई कोनी हो सकै। मेरै दोरंगी पांख को मोर सूं मुकाबलो थोड़ी हो सकै।’ फेर कागलो मोर नै टोवण लाग्यो। बिनै मोर एक चिड़ीयाघर मांय ल्हाद्‌यो, बठे भोत सारा मिनख बिकै पींजरा कै बारै खड़्‌या बिकी सरूपाई नै सरावा हा। जद सारा मिनख बठे सूं चलग्या जणा कागलो मोर सूं पूछ्‌यो, ‘मोर भाई, तू कत्तो सरूप है! घणा सारा मिनख तनै देखबा क्ले आवै है। मन तो देखता ई आपगी निजर्‌यां दूसरै कानी कर लेवै है। मनै लागै है कि तू जुग को सैसूं सरूप अर खुस रहबाळो जिनावर है।’ मोर कागलै नै खैयो, ‘मनै बी ओई लागै है, पण मेरी सरूपाई ई मेरी बैरी बणगी। ई बजै सूं मै चिड़ियाघर मांय कैद हूं। अठे मै सगळा जिनावरां को मोको-मुवावनो करबा कै पा मनै बेरो पड़्‌यो कि तनै छोड’र बाकी सै जिनावर अठे कैद है। अब मनै लागै है कि मै मोर नै हो’र एक कागलो होतो तो बड़िया हो अर मै मनमरजी सूं कठे बी हांडतो-फिरतो।’ कागलै नै आपगी अमियत को ग्यान होगो।

सीख:- सगळा की न्यारी-न्यारी अमियत होवै है।