गुरुजी खेत की पाळ कन खड़्‌या हा। बी बखत ई बांको एक चेलो एक आफत ले’र आयो अर बोल्यो, ‘गुरुजी सचाई नै पाबा क्ले कुणसो गेलो चोखो है?’ गुरुजी बिनै पुछ्‌यो,  ‘तू तेरै हात मांय कुणसी गुठी पेर्या है?’ चेल्यो बोल्यो ‘आ मेरै बाप की निसानी है जखी बै मरती बखत मनै दी ही।’ गुरुजी बोल्या, ‘मन दे।’ चेलो आपगी आंगळी सूं गुठी काड’र परेम सूं गुरुजी नै देदी। गुरुजी गुठी नै खेत कै बीच म नाज म बगा दी। चेलो अचरज सूं चिलायो अर बोल्यो, ‘गुरुजी थ्हे ओ के कर्‌यो, अब मनै सक्यूं छोड’र गुठी नै ढूंढणी पड़सी। बा मेरै क्ले अमोल है।’ गुरुजी बोल्या, ‘बा तो ल्हाद्‌यासी, पण बा मिलणा कै पाछै तनै तेरो जबाब बी मिल ज्यासी। सचाई को गेलो बी अंय्या को ई होवै है। बो दूसरै गेला सूं न्यारो अर अमोल होवै है।

सीख:- सचाई कै गेलै पै ई चालणो चाये।