गरमी कै दोफारी म एक कास्तगार बांस कै झुरमट मांय बणेड़ी संत की कुटिया कै कन डट्‌यो। बो संत नै एक बोजा कै तळै बेठ्‌या नै देख्‍यो। कास्तगार बोदरेसन म बोल्यो, ‘नाज की हालत भोत माड़ी है। मनै लागै है कि आबकै गुजारो कोनी होवै।’ संत सुण’र खैयो, ‘तनै चाये कि तू भाठा नै पाणी दे।’ कास्तगार ई बात को मतबल संत नै पुछ्‌यो तो संत बिनै आ काह्‌णी सुणाई। एक कास्तगार कोई संत की कुटिया कै कनकी जार्‌यो हो। बो देख्यो कै संत बाल्टी म पाणी ले’र जाय है। कास्तगार बिनै पुछ्‌यो कै बै पाणी कठे ले’र जार्या है। संत कास्तगार नै बतायो कि मै भाठा नै पाणी देवूं हूं, जिसूं बापै एक दिन बोजा उगसी। कास्तगार नै ई बात पै भोत अचम्बो होयो अर बो मान देतो होयो झटपट ई बठे सूं हांसतो होयो चलगो। संत रोजिना भाठा नै पाणी देता रह्‌या। थोड़ा दिना पाछै भाठा पै सिंवाळ उग्याया। सिंवाळ म बीज आ’र पड़गा अर बै उगगा। मतबल ओ होयो कि भाठा पै बोजा उग्याया।

सीख:- बेगार करबा सूं कोई बी कार सोरो हो सकै।