एक दिन एक मिनख संत रामदास सूं बोल्यो, ‘मेरै घरां की गुवाड़ी म एक भोत बडो बोजो है, जखो दरमई कार को कोनी है। बिकी पेडी अत्ती कल्डी अर किसी सूं भरेड़ी है कि बिनै कोई लकड़ी काटबाळो अर खातोड़ बी कोनी काट सकै। बिका डाळा बी अत्ता मुड़ेड़ा है कि बासूं राछ का बंडा बी कोनी बणाया जा सकै। अंय्या का बोजा होणै सूं बी के नफो?’ रामदास कह्यो, ‘के तू ननी म उछळबाळी मछियां नै कोनी देखी? बै भोत छोटी अर चंचळ होवै है। पाणी कै ऊपर उडबाळा कीड़ा नै देखता ई बै लपक की बानै आपगो सिकार बणा लेवै है, पण अंय्या की मछी बोळा दिना ताणी जिंदी कोनी रह है। या तो बै जाळ म या फेर दूसरी मछियां को सिकार बण ज्याय है। बठिन दूसरै कानी याक कत्तो बडो अर बिना कार को जिनावर होवै है। बो नै तो खेत मांय कार करै अर ओर नै कोई कार सई ढंग सूं कर सकै है, पण याक भोत लम्बो जीवन जीवै है। तेरो बोजो बेकार होणै सूं ई अत्ता दिना ताणी खड़्यो है। बिकी डाळी कै तळै बेठ’र बिको ध्यान कर्या कर।
सीख:- लाम्बो जीवन जीणै सूं थोड़ो जीणो चोखो है, पण बिनै चोखा कामा क्ले जीवो।