भोत पुराणी बात है। एक कागलो खाणै की खोज म अठिन-बठिन हांडर्‌यो हो, पण बिकै हात क्यूंई कोनी लाग्यो। बो आखतो हो’र एक बोजा पै जा’र बेठगो। अरै वा! भाग होवै तो अंय्या को - बिनै एक थाळी मांय पनीर को बटको दिख्यो। बो थाळी कै कन गयो अर बिनै आपगी चूंच सूं ठा लियो अर उडबा लाग्यो। बोळा सारा कागला बिकै गेल उडबा लाग्या। बै बी पनीर नै बिकनै सूं खोसणो चावा हा। बो सै नै चकमो देबा म सुफल होगो अर एक बोजा की डाळी पै जा’र बैठगो। बठिनै कठे सूं एक लूकती बठी की जारी ही। लूकती कागलै की चूंच मांय पनीर देख्यो तो बिकै मूं म पाणी आगो। बा तावळी ई कागलै सूं बिको पनीर आपगै कब्जा म लेणै की योजना बणाई अर बा कागलै कानी देखी अर बोली – “अरै भाई कागला, तू कत्तो सरूप है।” “मै मेरो अत्तो-पत्तो तनै बताद्‍यूं– मै एक भोळी-ढाळी लूकती हूं। मेरी भायलियां मन बतायो है कि तेरी उवाज म एक गजब की मिठास है। के आ बात सई है?” कागलो आ सुण’र हेरान होगो। आज ताणी तो कोई बी बिकी उवाज की तारीफ कोनी करी। पण बो चुप रहयो। “भाई कागला, तेरी मीठी उवाज म के तू मेरै क्ले एक गीत कोनी गा सकै है, सुणावो नै भाया।” पण अब ताणी बो चुप हो। लूकती फेर बोली, “के तू तेरी लाडली भाण की अत्ती सी मनस्या बी पूरी कोनी कर सकै है?” “तू कत्तो फूटरो है, तेरै पांखड़ा को तो खैणो ई के है? मेरै क्ले एक गीत गा नै भाया।” कागलो बिकै फंक्या म आगो। बो आपगी चूंच खोली अर लाग्यो कांव-कांव करबा। अरै, ओ के, पनीर बिकी चूंच सूं निकळ’र जमीन पै पड़गी। लूकती झट देणी बिनै ठा लियो अर खागी। पण जद ताणी कागलै कै समज म आती कि के होयो, लूकती बठे सूं चाल पड़ी। कागलो आपगो सो मूं ले’र रहगो।

सीख:- जणा ई तो खैयो है कि चापलूसा सूं बचो, आंको बिसवास कोनी करबो चाये।