1.अंबर कै थेगळी कोनी लागै।
अर्थ:- असंभव कार्य नहीं होता है।


2.अकास म बिजळी चिमकै, गधेड़ो लात बावै।
अर्थ:- निरर्थक आक्रोश का प्रदर्शन करना।


3.ई गांम म पीर, ई गांम म सासरो।
अर्थ:- सब कुछ नजदीक होना।


4.अलूणी सिला कुण चाटै?
अर्थ:- जिस काम में जरा भी स्वार्थ न हो उसे कोई नहीं करेगा।


5.आई भू आयो काम, गई भू गयो काम।
अर्थ:- बहू सुसराल आती है तो काम बढ़ जाता है और चली जाती है तो घट जाता है।


6.आई रुत की खेती, क्यूं करै पछेती?
अर्थ:- अवसर प्राप्‍त होने पर विलम्ब नहीं करना चाहिए।


7.इन्दर की मां बी तिसाई रही।
अर्थ:- प्रचुर मात्रा में होते हुए भी न मिलना।


8.उगतै कै ई सींग होगा।
अर्थ:- बच्‍चें के द्वारा बड़ी-बड़ी बाते करना।


9.उघाड़ै मांस पै तो माखी ई बेठसी।
अर्थ:- कुलटा के यहां चरित्रहीन व्यक्ति ही जायेंगे।


10.ऊखळी म सिर दे जखो घमकाऊं के डरै।
अर्थ:- जो मुश्बित मोल लेता है वह उनसे डरता नहीं है।


11.ऊत गांम म ऊंट आयो, लोग जाणै परमेसर आयो।
अर्थ:- मुर्खों के गाँव में ऊंट आया तो उन्होंने समझा की भगवान आ गये हैं।


12.एक काणो एक खोड़ो, राम मिलायो जोड़ो।
अर्थ:- एक अन्धा दूसरा लंगड़ा है, भगवान ने अच्छी जोड़ी मिला दी है।


13.एक कानी खाई, एक कानी कुवो।
अर्थ:- चारों तरफ से मुश्बित आना।


14.एक हात सूं ताळी कोनी बाजै।
अर्थ:- दोनों पक्षों का बराबर दोष होना।


15.ओ ई काळ को पड़बो, ओ ई बाप को मरबो।
अर्थ:- दुर्बल व्यक्ति को दोहरी मार एकसाथ पड़ना।


16.ओ ई जंवाई है जद तो खिला लिया दोयता।
अर्थ:- नाम मात्र के दामाद के प्रति व्यंग्य करना।


17.कद को मे जखो खेती सुकावै।
अर्थ:- निश्‍चित समय पर काम नहीं होना।


18.काळ जाय पण कलंक कोनी जाय।
अर्थ:- मृत्यु भले ही जाए, लेकिन अपमान का कलंक कभी नहीं जाता है।


19.खेरात बंटै बठे मंगता आपै ई पूंच ज्या।
अर्थ:- जहाँ भीख बंटती है वहाँ भिखारी अपने आप ही पहुँच जाते हैं।


20.खांड गळी का सै सिरी, रोग गळी का कोई कोनी।
अर्थ:- खाने-पीने के अवसर पर तो सब आ जाते हैं, लेकिन विपदा के समय कोई नहीं आता है।


21.गई आबरू पाछी कोनी बावड़ै।
अर्थ:- आदमी की एक बार इज्जत चली जाने पर वापिस नहीं आती है।


22.गोद को छोरो, राखणो दोरो।
अर्थ:- गोद के बेटे को रखना कठिन होता है, क्योंकि दोनों तरफ ही आत्मीयता का अभाव होता है।


23.घणी दाई घणा पेट फाड़ै।
अर्थ:- प्रसव के समय यदि दाई अधिक संख्या में एकत्र हो जाए तो जच्‍चा को हानि ही पहुँचाती हैं, क्योंकि सभी अपनी-अपनी होशियारी दिखाती हैं।


24.घोड़ो खावो घोड़ै कै धणी नै।
अर्थ:- जिसकी समस्या हो, वही उससे निपटारा करे।


25.चणा जठे जाड़ कोनी अर जाड़ जठे चणा कोनी।
अर्थ:- जहाँ सम्पत्ति है वहाँ उसे भोगने वाला नहीं है और जहाँ भोगने वाला है, वहाँ सम्पत्ति नहीं है।


26.चिळा तळै अंहेरो।
अर्थ:- अपनी बुराई न दिखाई देना।


27.छ्‌याळी दूद तो दे, पण दे मींगणी करर।
अर्थ:- आदमी काम तो करता है, लेकिन करता है परेशान करकर।


28.जठे राणोजी कह, बठे ई उदेपुर।
अर्थ:- ताकतवर के साथ चलना पड़ता है।


29.झूठ अर सांच म च्यार आंगळ को आंतरो।
अर्थ:- झूठ और सच में चार अंगुलियों जितनी दूरी होती है अर्थात् कानों से सुनी हुई बात झूठी और आंखों से देखी हुई सच्‍ची होती है।


30.झूठी राख छाणी, ल्हादी नै दाजी धाणी।
अर्थ:- अत्यधिक श्रम करने पर भी कुछ लाभ नहीं मिला।


31.टका दाई लेगी अर कुंडो फोड़गी।
अर्थ:- सर्वथा निकम्मे और अकर्मण्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त।


32.टूटतै अकास कै बळो कोनी लागै।
अर्थ:- अत्यन्त समर्थ व्यक्ति का विनाश होता है तो सामान्य साधनों से उसे नहीं रोका जा सकता है।


33.ठाडो काडै गाळ, हांसिया म ई टाळ।
अर्थ:- सबल की गाली को हंसी में टालना ही अच्छा है।


34.ठोड को मणियो ठोड सोवै।
अर्थ:- हर आदमी यथास्थान ही शोभित होता है।


35.डोळ जसा पंचोळ।
अर्थ:- अपने स्वभाव के अनुसार ही पंचायती करनी चाहिए।


36.ढांढा मारण, खेत सुकावण, तू क्यूं चाली आदै सावण?
अर्थ:- आधा सावन बीत जाने पर हवा का चलना पशुओं और खेती के लिए हानिकारक माना गया है।


37.तवै परली तेरी, चूलै मांयली मेरी।
अर्थ:- जब घर में तंगी हो और खाने वाले अधिक हों तब पहल के लिए स्पर्धा होना स्वाभाविक है।


38.थोथो थूक बिलोणा सूं गरज कोनी मिटै।
अर्थ:- थोथी बाते बनाने से मतलब पूरा नहीं होता है।


39.थोथो संख पराई फूंक सूं बाजै।
अर्थ:- जिसमें थोड़ी भी अक्ल न हो, वह दूसरों के कहे अनुसार की करता औऱ कहता है।


40.दिन म गरमी रात म ओस, बिरखा जा पूगी सो कोस।
अर्थ:- वर्षाकाल में दिन में गरमी रहे और रात में ओस पड़े तो वर्षा होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।


41.दूद बी धोळो, छाय बी धोळी।
अर्थ:- जो आदमी छल-कपट नहीं जानता है, वह दूसरे की बात का तुरन्त विश्‍वास कर लेता है।


42.धन धणी को, गुवाळ कै हात म लाठी।
अर्थ:- ग्वाला जिन पशुओं को चराता है, वो तो दूसरों के होते हैं, उसकी स्वयं की तो केवल वह लकड़ी होती है जिससे वह पशुओं को हाँकता है।


43.धापेड़ो उगाळी गेरै।
अर्थ:- सम्पन्‍न व्यक्ति किसी न किसी काम में पैसा लगाता रहता है, चाहे उसके पैसे डूब क्यों न जाए।


44.नटेड़ो बाणियो, बळ म आवै जद जाणियो।
अर्थ:- एक बार ना करने के बाद बनिया जल्दी ही किसी काम के लिए हाँ नहीं भरता है।


45.नणद को नणदोई गळै लगा’र रोई, पाछै फिरकै देख्यो तो सगो नै कोई।
अर्थ:- ननद का ननदोई कोई निकट का रिश्‍तेदार नहीं होता है अर्थात् झूठ की आत्मीयता प्रकट करना।


46.पांवरी गंडकड़ी, पूंछ म कांगसियो।
अर्थ:- बिना उपयोग की वस्तु को अपने पास में रखना।


47.पोल को टको पोल म ई गयो।
अर्थ:- हराम का पैसा हराम में ही जाता है।


48.फाटेड़ा गाबा कै कारी लागज्या, फूटेड़ा करमा कै कोनी लागै।
अर्थ:- फटे हुए कपड़ों को पैबन्द लग सकती है लेकिन जिसका भाग्य ही खराब हो उसका कोई उपचार नहीं होता है।


49.फूट्‌या भाग फकीर का, भरी चिलम ढुळज्या।
अर्थ:- भाग्यहीन व्यक्ति का बना-बनाया काम भी बिगड़ जाता है।


50.बटोड़ा म सूं थेपड़ी ई नीसरै।
अर्थ:- काम से ही काम निकलता है।


51.बारा बरस सै बांझ ब्याई, पांगळो पूत ल्याई।
अर्थ:- काफी मेहनत करने के बाद भी अच्छा लाभ न मिलना।


52.भाख फाटी, खोल-टाटी, राम देगो दाळ-बाटी।
अर्थ:- भगवान खाने के लिये भोजन देगा उससे पहले अपना घर तो स्थाई बनाओ।


53.भूखै की बावड़्यावै पण झूठै की कोनी बावड़ै।
अर्थ:- भूखे की कभी न कभी भगवान सुन लेता है और वह संपन्‍न बन जाता है, लेकिन झुठा कभी नहीं फलता है।


54.मन राजा को सो, करम कमेड़ी को सो।
अर्थ:- कर्म तो कमेड़ी (पक्षी) के जैसा करता है और मन राजा के जैसा चाहता है।


55.यारी का घर दूर है।
अर्थ:- यारी निभा पाना बड़ा मुश्‍किल होता है।


56.राम धणी कै गांम धणी।
अर्थ:- गरीब व्यक्ति को भगवान का सहारा या गाँव का।


57.रोवण म रोवण जोगो नै, गीतां म गावण जोगो नै।
अर्थ:- किसी काम का न होना।


58.लखण लखेसरी का, करम मंगतै का।
अर्थ:- गुण दानवीर के जैसे और करम भिखारी के जैसे होना।


59.लुगाई को खसम मोट्‌यार, मोट्‌यार को कसम मांगतोड़ो।
अर्थ:- स्‍त्री का खसम आदमी और आदमी का खसम ऋणदाता होता है।


60.सीदै पै दो लदै।
अर्थ:- गरीब व्यक्ति को हर कोई दु:खी करता है।


61.सेर की हांडी म सवा सेर कोनी खटावै।
अर्थ:- क्षमता के विपरीत कार्य नहीं किया जा सकता है।


62.हथेळी म सिरस्यूं कोनी उगै।
अर्थ:- जल्दबाजी में कार्य नहीं किया जा सकता है।


63.हातां लगावै, पगां बुझावै।
अर्थ:- चुगलखोरी करने वाला खुद ही लड़ता है और खुद ही समझाता है।