गुबरीला को महल

एक दिन गुबरीला नै बडो सो पोठो दिख्यो। बो बिकी परख करी अर आपगै भायला नै ईकै बारा म बतायो। बै सगळा बी पोठा नै देख्यो तो बै बिमै एक नगर बसाबा को परण कर्यो। कई दिना तांई बी पोठा म बेगार करबा कै पाछै बै एक बडी नगरी बणाई। बै आपगी सुफलता सूं राजी हो’र बी पोठा की खोज करबाळै गुबरीला नै ई नगरी को पेलो बादस्या बणा दियो। आपगै बादस

लूकती अर कागलो

भोत पुराणी बात है। एक कागलो खाणै की खोज म अठिन-बठिन हांडर्‌यो हो, पण बिकै हात क्यूंई कोनी लाग्यो। बो आखतो हो’र एक बोजा पै जा’र बेठगो। अरै वा!

एक तांती ऊं दूसरी तांती

एक धनमान मिनख एक बडै संत नै क्यूं लिख’र देबा क्ले खैयो, जखो बिकै अर बिकै कुणबा क्ले एक तांती सूं दूसरी तांती क्ले धन अर सुख नै बढाबाळो होवै। संत एक कागद पै लिख्यो, ‘बाप मरै है, बेटो मरै है, पोतो मरै है।’ आ देख’र धनमान मिनख नै भोत झाळ आयी। बो बोल्यो, ‘मै थ्हानै मेरै कुणबा की खुसाली क्ले किमी लिखबा क्ले खैयो हो। अंय्या क

बिना कार को बोजो

एक दिन एक मिनख संत रामदास सूं बोल्यो, ‘मेरै घरां की गुवाड़ी म एक भोत बडो बोजो है, जखो दरमई कार को कोनी है। बिकी पेडी अत्ती कल्डी अर किसी सूं भरेड़ी है कि बिनै कोई लकड़ी काटबाळो अर खातोड़ बी कोनी काट सकै। बिका डाळा बी अत्ता मुड़ेड़ा है कि बासूं राछ का बंडा बी कोनी बणाया जा सकै। अंय्या का बोजा होणै सूं बी के नफो?’ रामदास

भाठा पै बोजा

गरमी कै दोफारी म एक कास्तगार बांस कै झुरमट मांय बणेड़ी संत की कुटिया कै कन डट्‌यो। बो संत नै एक बोजा कै तळै बेठ्‌या नै देख्‍यो। कास्तगार बोदरेसन म बोल्यो, ‘नाज की हालत भोत माड़ी है। मनै लागै है कि आबकै गुजारो कोनी होवै।’ संत सुण’र खैयो, ‘तनै चाये कि तू भाठा नै पाणी दे।’ कास्तगार ई बात को मतबल संत नै पुछ्‌यो तो संत बिनै

हां सायद

कोई गांमगै मांय एक कास्तगार रहतो। बिकै कन एक घोड़ो हो। एक दिन बो घोड़ो आपगी जेवड़ी तुड़ा’र भाजगो। आ खबर सुण’र आस-पड़ोस का मिनख बिनै दिलासो देबा आया। सगळा बोल्या, ‘ओ तो भोत बुरो होयो।’ कास्तगार जुबाब दियो, ‘हां सायद।’ आगलै दिन कास्तगार को घोड़ो ओटो आग्यो अर आपगै सागै तीन जंगली घोड़ा बी ल्यायो। कास्तगार कै घरां पड़ोसी ओज