बस सायकल चलावूं

एक गुरुजी कै पांच चेला हा। एक दिन गुरुजी देख्‍यो कै पांचू बजार मांय सूं आप-आपगी सायकल पै ओटा आर्‌या हा। जद बै सायकल सूं तळै उतरगा, जणा गुरुजी बासूं पुछयो ‘थ्हे सगळा सायकल क्यूं चलावो हो?’ पेलो चेलो जुबाब दियो, ‘मेरी सायकल पै आलूवां को बोरो बनर्यो है। ई सूं मनै बोरा नै मेरी कड़तू पै कोनी सम्हाणो पड़ै। गुरुजी बिनै बोल्या

सचाई को गेलो

गुरुजी खेत की पाळ कन खड़्‌या हा। बी बखत ई बांको एक चेलो एक आफत ले’र आयो अर बोल्यो, ‘गुरुजी सचाई नै पाबा क्ले कुणसो गेलो चोखो है?’ गुरुजी बिनै पुछ्‌यो,  ‘तू तेरै हात मांय कुणसी गुठी पेर्या है?’ चेल्यो बोल्यो ‘आ मेरै बाप की निसानी है जखी बै मरती बखत मनै दी ही।’ गुरुजी बोल्या, ‘मन दे।’ चेलो आपगी आंगळी सूं गुठी काड’र परेम

सगळा की अमियत

बीड़ म रहबाळै कागलै कै कोई दुख कोनी हो। एक कागलो सुख चेन सूं जिर्‌यो हो। फेर एक दिन बो हंस नै देख्‍यो। धोळा हंस नै देख’र बो सोच्यो, ‘ओ हंस कत्तो धोळो है अर मै कंय्या को काळो हूं। ओ हंस जरूर ई जुग को सऊं खुस जिनावर है।’ कागलो आ बात हंस नै खैई जणा हंस बोल्यो, ‘ना बीरा अंय्या कोन्या है। भोत बखत ताणी मन बी लागो हो कि मै जु

कागलो अर कास्तगार

एक कागलो अर कास्तगार घणा जोरका भायला हा। कास्तगार रोजिना पेली कागला नै खाणो खुवातो पा खुद खातो। बठे सूं जाणै कै पाछै कागलो उड’र बरमाजी कै दरबार मांय पूंच ज्यातो अर दरबार कै बारै लागेड़ा बोजा पै बेठ’र बांकी सारी बात सुणतो। आथणकै बाई बात कागलो कास्तगार नै खैतो। एक दिन कागलो कास्तगार सूं खैयो, ‘आज बरमाजी खैर्या हा कै ई सा

बनड़ी नै द्‍यो परणाय

बनड़ी बेठी ओखड़ला गोखड़ला दादोजी द्‍यो परणाय अटीलो आय उतर्यो बागा म-2
बागा म रै बगीच्यां म रावल को बोल गयो बतळाय गयो हरमल को
म्हारै सावै चढी बनड़ी कै निजर लगाय गयो हरमल को-2
काची-काची कळिया तोड़ै ही बागा म-2
मै उळझ पड़ी घूंघट म मुखड़ो निरखै ही दरपण म-2

जामण जायो

ओ बीरै जेर्यो मेर्यो बरसलो मेव जामण जाया नानेरै भुनै सवावणी जी
ओ बीरा खींवै-खींवै भर्या हीं तळाव जामण जाया नाडा रै खाडा सै भर्या जी
ओ बीरा नाडा म झूरै रै जोटै जामण जाया खाडा म झूरै है पाडिया जी
ओ बीरा जेठूड़ा रो पैलो रै मासै जामण जाया इनर राजा धरराईयो जी
ओ बीरा साडूड़ा रो दूजा मासै जामण जाया हाळिया हळ जोड़िया जी