बस सायकल चलावूं
एक गुरुजी कै पांच चेला हा। एक दिन गुरुजी देख्यो कै पांचू बजार मांय सूं आप-आपगी सायकल पै ओटा आर्या हा। जद बै सायकल सूं तळै उतरगा, जणा गुरुजी बासूं पुछयो ‘थ्हे सगळा सायकल क्यूं चलावो हो?’ पेलो चेलो जुबाब दियो, ‘मेरी सायकल पै आलूवां को बोरो बनर्यो है। ई सूं मनै बोरा नै मेरी कड़तू पै कोनी सम्हाणो पड़ै। गुरुजी बिनै बोल्या