निन्दरा बेचद्‍यूं

तपस्या बरस हजार की ओर सतसंग की पल एक।
तो बी बराबर ना तुलै कवि सुखदेव किया विवेक॥
नीन्द निसाणी मोत की ओर उठ कबीरा जाग।
ओर रसायन‌ छोड़ कै तो एक राम रसायन ध्यान॥

निन्दरा बेचद्‍यूं कोई ले तो निन्दरा बेचद्‍यूं कोई ले तो
रामोराम रटै तो तेरो माया जाळ कटैलो [टेर]

सतगुरु कर मेरा भाई

बिघ्‍न हरण मंगल करण ओर होत बुधी परकास।
लेत नांव गणेस को तो हरे करोड़ अपराद॥
बरमा बिसणु लक्समी तो महेस गुणो की खान।
सुरसवत मया मनाय कै मै करू हरि गुणगान॥
बिन्या गुरु बिन्या ना कोई संगी…अंतै समय कै मांई रै मन मेरा सतगुरु कर मेरा भाई [टेर]

गायां रोवै

एहे…गायां रोवै रै कानूड़ा कुण म्हारी सुध-बुध लेवै रै गायां रोवै रै [टेर]

एहे…जमना जी कै जळ म रै कान्हा मळ-मळ कै न्हुवातो रै
आजकाल का मिनख लठ सोटा सै धोवै रै गायां रोवै रै [1] टेर

एहे…गऊवां रो ग्वाळो बणकै हरी-हरी घास चरातो रै
मिलै पराळी सुखी तूड़ी आंख्या रोवै रै गायां रोवै रै [2] टेर

पणघट को स्याम

एहे…पणघट को रै स्याम बड़ो ही रसियो रै पणघट को [टेर]

एहे…गाछां की ओट छिप्यो रै मनमोहन
गोपिया नै रोज दिखावै तसियो रै पणघट को [1] टेर

एहे…सबर सखिया तो जळ भरण रै आई रे
मनमोहन म बांको मन बसियो रै पणघट को [2] टेर

कूदयो जमना म

एहे…कूदयो जमना म कन्हियो रसियो लेकै मुरली रै कूदयो जमना म [टेर]

एहे…कूद पड़्यो बनवारी जळ म ग्वाळा रोवै सारा रै
अरै कई ग्वाळा घर म भाज्या कई पुकारै रै कूदयो जमना म [1] टेर

एहे…रोवत-रोवत जसोदा रै जमना तट पर आई रै
अरै म्हानै छोड़ कर कठे गयो तू कंवर कन्हाई रै कूदयो जमना म [2] टेर

मुख मुरली

एहे…मुख मुरली बजाई रै कान्हा नन्द जी का रै मुख मुरली [टेर]

एहे…मुरली की आवाज म्हानै महलां म सुणिज्य रै
अरै महलां बेठी गोरड़ी मगन होय जाय मुख मुरली [1] टेर

एहे…मुरली की आवाज म्हानै बागा म सुणिज्य रै
अरै बागा बेठी कोयली मगन होय जाय मुख मुरली [2] टेर