सेखावाटी भजन

चाल सखी सतसंग म

एक घड़ी आदी घड़ी तो आदी म पुनयाद।
तुलसी संगत संत की तो कटै करोड़ अपराद॥
कहे मछन्दर नाथ कर सतसंग आत्म बल राखो।
आयो मोको हात सै गयो तो फेर पछताव स्यो॥

चालो सखी ए सतसंगत करिये बिरथा ए जनम गंवावत है री [टेर]

बालपण हंस खेल गमायो
जोबन का अंग सतावत है री चालो सखी ए सतसंगत करिये [1] टेर

गुरु बिन घोर अंधेरा

गणपति गोरी पुतर को तो पेल्या लिज्यो नांव।
कस्ट निवारण देव है तो बिपदा को के काम॥
जय सारदा मां जय सरस्वति ओर हंस वाहिनि माय।
सतसंग म मै गाय रह्‍या तो दिज्ये पार लगाय॥

गुरु बिन्या घोर अंधेरा रै साधो भाई गुरु बिन्या घोर अंधेरा रै
जसै मन्दिर है दीपक बिन सुना ना बसतु का बेरा रै [टेर]

मदवा घूमत जूं हाथी

मन लोभी मन लालची तो मन चंचल मन चोर।
मन कै मतै मत चालिये पलक-पलक म ओर।
मन जाणै मै मेल चढूं मोति पेरू कान।
सांई कै हात कतरनी बो राखै है उरमान॥

मदवा घूमत जूं हाथी अमर पटो मेरै सतगुरु लिख दिया जागी री साची
घूमत हो मतवाला मन तू घूमत जूं हाथी [टेर]

समज मन मायला

कोई तन दुखी तो कोई मन दुखी ओर कोई निरधन भया उदास।
थोड़ा-थोड़ा सबी दुखी तो एक सुखी राम को दास॥

समज मन मायला रै बीरा मेरा मेलोड़ी चादर धोय [ टेर ]

गुरु सा खुदाया कुआ बावड़ी रै बीरा मेरा नीर ए गंगाजळ होय
कई रै संत तो न्हायगा रै बीरा मेरा कई गया मुख धोय [1] टेर

फकीरी अलबेला रो खेल

परीत नै किज्ये पंछी जेसी जल सुखे उड़ जाय।
परीत किज्ये मछली जेसी जल सुखे मर ज्याय॥

अब रै काय रै सके ना खेल फकीरी रै अलबेला रो खेल [टेर]

अब ज्यूं रण माही लड़ै नर सूरा ईणिया झुक रही सेल
गोळी तो नार जुझरबा चालै सतमुख लेवै झेल [1] टेर

जोगिया रै

हरि बाचक बिरम की हाट मंडी है जिन हाट म हार है लाख सोदाई।
गये थोड़ो ब्याज तो लेवण मुळजा को पाछो नै आई।
अरि मूळ ठगाय गये एक कानत असी बाचक बिरम हटाई।
इन हाट की खाट म आवो मति बिरम देखो तो देखो घट मांई॥

अगम की नींद म रे…… जोगिया रै
बिरला ही मोज उडाय ……हे [टेर]

सतगुरु एसा किज्ये

सूंडाला दुख भंजला तो सद जवाला भेस।
सै सूं पेल्या सुमरिये तो गोरी के पुतर गणेस॥
पेल्यां किस नै मनाईये तो किस का लिज्ये नांव।
मात-पिता गुरु आपणा तो भज अलख परुस का नांव॥

मनवा सतगुरु एसा किज्ये रै लिज्ये भली रै बुरी पहचान
भली रै बुरी पहचान लिज्ये भली रै बुरी पहचान [टेर]

बरहम ग्यान को लटको

अब कोण जगावै बरहम को ओर कोण जगावै जीव।
कोण जगावै सूरत को तो कोण मिलावै परीत।
बिरह जगावै बरहम को ओर बरहम जगावै जीव।
जीव जगावै सूरत को तो सूरत मिलावै परीत॥

आवागमन का सांसा रै मिटज्या आवागमन का सांसा मिटज्या
मिटै भहम को खटको सुणाऊ थ्हानै बरहम ग्यान को लटको [ टेर ]

निन्दरा बेचद्‍यूं

तपस्या बरस हजार की ओर सतसंग की पल एक।
तो बी बराबर ना तुलै कवि सुखदेव किया विवेक॥
नीन्द निसाणी मोत की ओर उठ कबीरा जाग।
ओर रसायन‌ छोड़ कै तो एक राम रसायन ध्यान॥

निन्दरा बेचद्‍यूं कोई ले तो निन्दरा बेचद्‍यूं कोई ले तो
रामोराम रटै तो तेरो माया जाळ कटैलो [टेर]

सतगुरु कर मेरा भाई

बिघ्‍न हरण मंगल करण ओर होत बुधी परकास।
लेत नांव गणेस को तो हरे करोड़ अपराद॥
बरमा बिसणु लक्समी तो महेस गुणो की खान।
सुरसवत मया मनाय कै मै करू हरि गुणगान॥
बिन्या गुरु बिन्या ना कोई संगी…अंतै समय कै मांई रै मन मेरा सतगुरु कर मेरा भाई [टेर]